Operation Blue Star | ऑपरेशन ब्लू स्टार
दोस्तों ऑपरेशन ब्लू स्टार
एक ऐसा ऑपरेशन है जिसने देश का बहोत बड़ा नुकसान किया। कहा जाता है
अगर ऑपरेशन ब्लू स्टार नहीं हुआ होता तो शायद ततक़ालीन प्रधानमंत्री आइरन लेडी
इन्दिरा गाँधी की हत्या नहीं होती। सबसे बड़ा सवाल ये है की क्या ऑपरेशन ब्लू स्टार
को रोका जा सकता था?
एक कड़वा सच है दोस्तों की जब 1947 में देश का बटवारा हुआ तो धर्म-मज़हब के
नाम पर हुआ। लाखों लोग बेघर हुए, दोनों
तरफ से लोगों का पलायन हुआ, लाखों लोग मारे गए, लाखों बहन बेटियों की आबरू लूटी गई।
नुकसान तो सब का हुआ मगर देखा जाए तो इस बटवारें ने पंजाब का बहोत बड़ा
नुकसान किया। पंजाब दो प्रांतो में बट गया ओर बदकिस्मती से जो हिस्सा पाकिस्तान के
हिस्से में चला गया। उस समय लाहोर एक बहोत बड़ा सेंटर था पंजाब प्रांत का ओर वो लाहोर भी
पाकिस्तान में चला गया। तो पंजाब को ये लगा की उसके साथ बहोत नाइंसाफ़ी हुई है ओर इधर उधर पलायन में
जो जाने गई इसका असर भी पंजाब पर बहोत ज्यादे हुआ, तो हिन्दू मुस्लिम के साथ साथ इस से सिक्खों को
भी बहोत ज्यादे नुकसान पहुँचा, उस समय लाहोर ओर पूरे पंजाब प्रांत में सिक्खों का राज चलता था, लेकिन बटवारें ने सब खतम केर दिया। फिर उस वक़्त
सिक्खों के लिए भी एक अलग देश की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी, बड़े पैमाने पे तो नहीं लेकिन
थोड़ी बहोत शुरू हो गई थी। ओर उसी वक़्त एक नाम पड़ा था सुरूआत में खालिस्तान। खालिस्तान का
मतलब होता है एकदम प्योर जगह, उस वक़्त खैर इसकी मांग इतनी उठी नहीं लेकिन बीच बीच में सिक्खों के लिए
एक अलग राज्य की मांग भी जोड़ पकरती रही, जिस राज्य में
सिक्खों का सब कुछ अलग हो, उसे अलग अधिकार मिले। उस समय आंध्रा
में भाषा के आधार पे एक धारणा प्रदर्शन हुआ ओर आंध्रा को एक अलग राज्य घोषित किया
गया, इसी का हवाला देते हुए अब
सिक्खों का भी कहना था की पंजाब में भी पुंजाबी बोला जाता है ओर भाषा के आधार पर
इसे भी एक अलग स्वतंत्र अधिकार मिले, तो नवम्बर 1966 में पंजाब को भाषा के आधार पर
विभाजित केर दिया गया ओर एक नया राज्य बना पंजाब, इस से पहले पंजाब, हरियाणा ओर हिमाचल
एक ही प्रांत था। राज्य तो बन गया लेकिन धीरे धीरे चिजे बदलती गई, अब चंडीगढ़ को लेकर लड़ाई शुरू हो
गई की चंडीगढ़ पंजाब का हिस्सा है लेकिन ये हरियाणा की भी राज्यधानी है। पंजाब कृषि प्रधान
है तो नहरों को लेकर भी बीच बीच में खटास आई। सिक्ख धर्म
दुनियाँ के शायद सबसे नए धर्मों मे से एक है। कहा जाता है
सिक्खों का इतिहास गुरुनानक देव के साथ 1469 से प्रारंभ होता है ओर इनके कुल 10
गुरु हुए ओर गुरुगोविंद सिंह ने ये कहा की 10 गुरु के बाद गुरुग्रंथ साहब ही हमेसा
के लिए गुरु का दर्जा रखेंगे। ओर उसी वक़्त जो सिक्खों के पांचवे गुरु अर्जन देव
थे इनहोने ही अमृतसर में हरविंदर साहब की स्थापना की थी ओर उसके बाद
जब महाराजा रंजीत सिंह आए तब उन्होने हरविंदर साहब के ऊपर सोने की परत चढ़ाई थी ओर
सोने के परत चढ़ाने के बाद ही हरविंदर साहब को एक नया नाम मिला स्वर्ण मंदिर Golden Temple.
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Operation Blue Star | ऑपरेशन ब्लू स्टार
जिस तरह मुस्लिम में सिया ओर सुन्नी है ठीक उसी तरह सिक्खों में भी, दो हैं एक सिक्ख ओर दूसरा निरंकारी ओर दोनों में बहोत ही छोटा सा फर्क है, सिक्खों का मानना है की गुरुग्रंथ साहब ही अंतिम गुरु हैं इनके बाद कोई गुरु नहीं है ओर निरंकारी का ये मानना है की कोई भी जीवित व्यक्ति भविष्य मे गुरु बन सकता है, ओर इसलिए निरंकारी के अलग अलग गुरु भी हुए, तो इसको लेके दोनों में मतभेद था। इसी बीच चंडीगढ़ ओर नहर के पानी को लेके धरना प्रदर्शन होती रही, कभी अकाली तो कभी काँग्रेस की सरकारें भी बनती रही, फिर 1975 में इन्दिरा गाँधी ने emergency लगवा दी जिस कारण 1977 में पूरे देश में काँग्रेस ओर इन्दिरा की हार हुई, पंजाब में अकाली की सरकार वापस आई, ओर अकाली धीरे धीरे मजबूत होने लगी, इसका कारण था की सेंटर में इन्दिरा जैसी ताकतवर नेता तो थी लेकिन पंजाब में काँग्रेस का कोई ऐसा ताकतवर नेता नहीं था जो पंजाब में दुबारा काँग्रेस को वापस लाए, 1977 के बाद 3 साल के बाद ही जनता पार्टी की सरकार गिरि हो 1980 में इन्दिरा गाँधी दुबारा भरी मतों से सरकार में आई ओर साथ ही पंजाब में भी काँग्रेस आई, लेकिन 1977 से 1980 के बीच जब काँग्रेस बाहर थी तो इन्दिरा गाँधी ये सोचने पर मजबूर हो गई की वो पंजाब जीत तो गई है लेकिन कोई दबंग नेता पंजाब के लिए काँग्रेस के पास नहीं है, तभी गैनी जैल सिंह जो बाद में हमारे देश के राष्ट्रपति बने उन्होने इन्दिरा गाँधी के बेटे संजय गाँधी को ये बताया की पंजाब में एक जनरैल सिंह भिंडरावाले हैं जो काफी तेज तर्रार, वो पंजाब में काम आ सकते हैं, जनरैल सिंह भिंडरावाले सिक्खो के ग्रंथ एवं धर्म के बारे में बहोत सारा अध्ययन कर रखा था, 7 साल के उम्र से ही ये दमदमी टकसाल में पढ़ाई लिखाई कर रहे थे, दमदमी टकसाल अमृतसर से करीब 35 किलो मीटर दूर है ये सिक्खों का शैक्षिक संगठन भी है जहां सिक्ख धर्म के ज्ञान ओर सिक्ख धर्म से संबन्धित सारी चिजे होती है, जनरैल सिंह भिंडरावाले इतने तेज तर्रार थे की दमदमी टकसाल के गुरु ने नियम तोड़ते हुए अपने बेटे की जगह जनरैल सिंह भिंडरावाले को दमदमी टकसाल का अध्यक्ष बना दिया, अध्यक्ष बनने के बाद जनरैल सिंह भिंडरावाले का दबदबा बढ़ना सुरू हुआ इस बीच निरंकारी ओर सिक्खों के बीच काफी झरप चल रही थी जिसमें कई जाने भी गई, जनरैल सिंह भिंडरावाले निरंकारियों के सख्त खिलाफ थे वो भी उग्र तेवर के साथ, निरंकारियों के साथ जितनी मारपीट हुई उसमें जनरैल सिंह भिंडरावाले की सोच थी जिसकी वजह से ये घटनाएँ हुई। अब गैनी जैल सिंह के कहने पे काँग्रेस ने जनरैल सिंह भिंडरावाले को अपने साथ मिलाया, वहाँ कई चुनाव में जनरैल सिंह भिंडरावाले ने काँग्रेस के उम्मीदवारों का खुल के सपोर्ट भी किया, ओर इनकी नज़दीकियाँ भी बढ़ी, उस समय काँग्रेस ने पैसों से भी जनरैल सिंह भिंडरावाले की काफी मदद भी करी, ओर उन्हीं पैसो से जनरैल सिंह भिंडरावाले ने धीरे धीरे हथियार ख़रीदने सुरू किए, जिसमे एके-47, एंटि टैंक लॉन्चर तक उसने खरीदे ओर ये सब काँग्रेस को पता था, लेकिन काँग्रेस ने अपनी जमीन मजबूत करने के लिए ओर अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए जनरैल सिंह भिंडरावाले को मोहरे की तरह इस्तेमाल किया, ओर जनरैल सिंह भिंडरावाले को इस्तेमाल करने के चक्कर में काँग्रेस ने पैसे ओर पावर से जनरैल सिंह भिंडरावाले की जितनी मदद की वो मदद जनरैल सिंह भिंडरावाले को बेलगाम कर दिया, इसी बीच 1980 में काँग्रेस दुबारा पंजाब में सत्ता में आती है ओर दरबारा सिंह वहाँ के मुख्यमंत्री बनते हैं लेकिन दरबारा सिंह को जनरैल सिंह भिंडरावाले को ओर उसके बढ़ते कद को पहले से पसंद नहीं करते थे, जबकि दरबारा सिंह को सी॰ म॰ बनाने में जनरैल सिंह भिंडरावाले का बहोत बड़ा योगदान था, अब पंजाब ओर सेंटर दोनों जगह काँग्रेस सत्ता में थी, इसी बीच अमृतसर में निरंकारी सम्मेलन चल रहा था जिसमें निरंकारियों ओर जनरैल सिंह भिंडरावाले के समर्थकों में झड़प हो गई जिसमें जनरैल सिंह भिंडरावाले के करीब 13 समर्थको की जाने गई। उसके बाद जनरैल सिंह भिंडरावाले को बहोत गुस्सा आया ओर संत निरंकारी के जो तीसरे गुरु थे गुरुवचन सिंह उन्हें 24 अप्रैल 1980 के शाम को गोली मार दी ओर उनकी मौत हो गई जिसमें जनरैल सिंह भिंडरावाले के समर्थक का हाथ था ओर रंजीत सिंह का नाम आया ओर रंजीत सिंह ने आत्म समर्पण कर दिया ओर रणजीत सिंह के सर पे जनरैल सिंह भिंडरावाले का हाथ था लेकिन रणजीत सिंह के गिरफ्तारी के बाद मामला ओर तनावपूर्ण हो गया। इसी बीच 1981 में जनगणना होना था जिसमे पंजाब केसरी के मुख्य एडिटर थे लाला जगत नारायण उन्होने पेपर में ये छपवा दिया की जब जनगणना हो तो जो हिन्दू हैं वो अपनी मातृभाष पंजाबी ना बताए बल्कि हिन्दी बताए, ये बात वहाँ के सिक्खों, जनरैल सिंह भिंडरावाले एवं उनके समर्थकों को अच्छा नहीं लगा ओर इसी कारण लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गई जिसमें जनरैल सिंह भिंडरावाले एवं उसके समर्थक का नाम आता है ओर इनकी गिरफ्तारी की मांग उठता है लेकिन सरकार जनरैल सिंह भिंडरावाले से बचना चाह रही थी लेकिन सरकार पर बहोत ज्यादे प्रेसर दिया जाता है ओर जनरैल सिंह भिंडरावाले की गिरफ्तारी होती है लेकिन भिंडरावाले की गिरफ्तारी के बाद इनके समर्थक पंजाब में बेकाबू हो जाते हैं ओर जगह जगह तोड़ फोड़ करते हैं कुछ जाने भी
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जाती है फिर मामला सांत करने के लिए सरकार को झुकना पड़ता है ओर लोकसभा में गृहमंत्री को ये बयान देना पड़ता है की लाला जगत नारायण के कत्ल के मामले में जनरैल सिंह भिंडरावाले के खिलाफ कोई सबूत नहीं है ओर भिंडरावाले को छोड़ दिया गया, अब जनरैल सिंह भिंडरावाले सरकार से भी नाराज थे ओर उन्होने काँग्रेस से दुरी बनानी सुरू कर दी, इधर काँग्रेस का भी काम निकाल चुका था काँग्रेस ने भिंडरावाले का जितना इस्तमल करना था कर चुकी थी काँग्रेस की सरकार भी आ चुकी थी, दरबारा सिंह सी॰ म॰ बन चुके थे, अब भिंडरावाले अकाली के साथ जा मिला, अकाली ओर भिंडरावाले ने मिलकर अब धर्म युद्ध मोर्चा नाम से मुहिम की सुरूआत की, अलग अलग जगह विरोध प्रदर्शन कीए, सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन, अलग अलग माँग, हर प्रदर्शन में जाने जानी लगी, कभी 100 तो कभी 50 कभी 200 जाने, हालात धीरे धीरे बिगड़ते गए, इसी बीच 1982 में दिल्ली में एशियन गेम्स होना था, इधर धर्म युद्ध मोर्चा का आंदोलन भी जारी था, 30 साल बाद भारत में एशियन गेम्स होने जा रहा था जो बहोत बड़ा मोका था भारत के लिए, तब इन्दिरा गाँधी ने इसे कामयाब करने के लिए राजीव गाँधी को ये ज़िम्मेदारी दिया था, जनरैल सिंह भिंडरावाले ओर अकाली को ये पता था की यही वो मोका है जहाँ प्रदर्शन कर वो अपनी माँग पूरी कर सकते है क्यूकी एशियन गेम्स पे अभी पूरी दुनियाँ की नजर है, ये नाइन्थ एशियन गेम था उस वक़्त। जब भिंडरावाले ओर अकाली ने ये धमकी दी की अगर उनकी माँगे नहीं मानी गई तो वो दिल्ली में बहोत बड़ा प्रदर्शन करेंगे ओर सिक्खों का एक बहोत बड़ा जत्था दिल्ली पहुँचेगा ठीक एशियन गेम्स के दौरान, जब ये बातें पता चली तो सरकार ने दिल्ली से लगे सारे बार्डर सील कर दिया जहां से भी पंजाब के लोग आ सकते थे ओर तलासी लि जाने लगी, साफ ऑर्डर था सिक्खों को दिल्ली आने से रोका जाए, कहते हैं ऑपरेशन ब्लू स्टार की जो बुनियाद पड़ी वो इसी चीज से पड़ी। उस समय बार्डर पे तलासियों के दोरान सिक्खों के साथ बहोत ज्यादे बदतमीजी ओर बदसलूकीयों की खबर आई, उस समय जो आर्मी के बड़े बड़े अफसर थे जिनहोने पाकिस्तान के साथ भी लड़ाई लड़ी उन लोगों को भी बहोत ज्यादे बेज़्यत किया गया, जो फ़ैमिली के साथ थे उनकी भी बहोत गलत तरीके से तलासी लि गई, मार पीट किया गया जिस से वे बहोत आहत हुए ओर आम सिक्खों के साथ भी किया गया, ओर इसको लेके बड़ी तेजी से गुस्सा पनपा पंजाब में ओर इस गुस्से का फ़ायदा उठाया भिंडरावाले ने, जो नोजवान सीख थे जिनहोने ये तलासी झेला था वो भिंडरावाले से जुड़ते गए ओर देखते ही देखते भिंडरावाले बहोत पॉपुलर हो गया, इसी बीच एशियन गेम्स भी ठीक ठाक निपट जाता है। जिस समय ये धरणा प्रदर्शन चल रहा था उस समय वहाँ एक डीआईजी हुआ करते थे अफतार सिंह अटवाल जिनहोने कई धरना प्रदर्शन को रोका था, ओर इधर भिंडरावाले का दबदबा भी बढ़ता जा रहा था, इसी बीच भिंडरावाले ने अपना ठिकाना बदल लिया ओर नया ठिकाना उसने गोल्डेन टैम्पल के अंदर अकाल तक्थ पे बनाया ओर वहीं से वो ज्ञान देना, मीटिंग करना, कब किस काम को अंजाम देना है सारा काम ऑपरेट करना शुरू कर दिया, अब वो अपनी जगह छोड़ कर अकाल तक्थ पर पहुँच चुका था ओर अकाल तक्थ गोल्डेन टैम्पल के अंदर, अकाल तक्थ वो जगह है जहाँ से सिक्खों के हर फैसले का ऐलान होता है, कहते हैं अकाल तक्थ की जो गद्दी है वो दिल्ली में उस समय मुगल दरबार की जो गद्दी थी उस से 1 फिट ऊपर बनाई गई थी, इसके पीछे सोच ये थी की गद्दियाँ बादशाहों के लिए होती है लेकिन अकाल तक्थ की गद्दी भगवान ओर गुरु के लिए है इसलिए इसे सबसे ऊपर होनी चाहिए, ओर इस गद्दी पे बैठने वालों को भगवान का दर्जा दिया जाता था, अकाल तक्थ सिक्खों के लिए बहोत ही ऊँची ओर पवित्र जगह मानी जाती है, धीरे धीरे भिंडरावाले ने अकाल तक्थ पे अपनी जगह बना ली ओर वहीं उसका दफ्तर ओर सबकुछ बन गया, ओर इसी समय दो मर्डर हुए थे पंजाब केशरी के एडिटर ओर निरंकारियों के गुरु का जिस कारण भिंडरावाले के खिलाफ़ सरकार पे भी हर तरफ से प्रेसर आ रहा था, लेकिन पंजाब सरकार ओर सेंटर गवर्नमेंट कोई भी इसके खिलाफ़ कोई एक्शन नहीं ले रहे थे, इसी बीच एशियन गेम्स, तलासी ओर बाँकी चीजों के कारण पंजाब में हालात इतनी ख़राब हुई की धीरे धीरे हिन्दू ओर सिक्खों के बीच लकीड़ खिचती चली गई, ओर इसी बीच भिंडरावाले पे ये इल्ज़ाम आया की चंडीगढ़, अमृतसर, जालंधर ओर बाँकी जगहों पर रात को चलने वाली बसों को निसाना बनाता ओर इनमें सवार हिन्दुओं को चुन चुन कर गोली मारी जाती, ओर कई बार ये घटनाएँ हुई इस से न केवल पंजाब बल्कि पूरे देश में खोफ़ का माहोल हो गया ओर फिर रात को बस सर्विस बंद कर दी गई लेकिन हत्या का यह सिलसिला जारी रही, इन हत्याओं के पीछे भिंडरावाले की मनसा ये थी की इस से दर के पंजाब मे रह रहे हिन्दू यहाँ से भाग जाएंगे ओर बाँकी जगह रह रहे सिक्ख पंजाब लॉट कर आ जाएंगे, इस ख़ून खराबे की बात जब इन्दिरा गाँधी को पता चली तो इन्दिरा गाँधी प्रेसर में आ के अपनी ही सरकार को जो पंजाब मे थी उसे बर्खास्त कर दिया, सी॰ म॰ दरबारा सिंह को हटा दिया ओर पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया, दरबारा सिंह को हटाने की एक वजह ये भी थी की वो भिंडरावाले के खिलाफ सीधा पुलिस कारवाई चाहते थे जबकी इन्दिरा गाँधी ये नहीं चाहती थी, अगर
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भिंडरावाले को गिरफ्तार कर लिया जाता तो ऑपरेशन ब्लू स्टार की कभी नोबत
ही नहीं आती, पंजाब में अब राष्ट्रपति शासन लग चुका था मतलब अब
सारा कंट्रोल सीधे सेंट्रल के हाथों में आ गया, इसी बीच जब अकाल
तक्थ को उसने अपना ठिकाना बना लिया तो पंजाब में एक ऐसी घटना हुई जिससे भिंडरावाले
का खोफ़ पूरे पंजाब में इसकदर फैला जिससे अब सेंट्रल मतलब इन्दिरा गाँधी को भी लग गया
की नहीं अब बस अब बहोत हो गया। एक दिन डीआईजी अफ़तार सिंह अटवाल जो उस समय सारे धरना
प्रदर्शन पे कंट्रोल करते थे वो सुबह सुबह मत्था टेकने गोल्डेन टैम्पल जाते हैं ओर
मत्था टेकने के बाद लोट ही रहे थे की गोल्डेन टैम्पल के सीढ़ियो पर भिंडरावाले के आदमियों
ने ए के 47 से अनगिनत गोलियां मर देते हैं, ओर मारने के बाद भी कई घंटो तक उनके लास को कोई उठाने नहीं आता क्यूकी गोली
मारने के बाद वो धमकी दे जाते हैं की अगर किसिने इसकी लास उठाई तो उसे भी इसी तरह मारा
जाएगा, भिंडरावाले का खोफ़ इतना था
की सारे कंट्रोल रूम ओर पंजाब पुलिस के तमाम बड़े बड़े ऑफिसर को ये बात पता होने के बाबजूद
की डीआईजी को सरे आम गोली मार दी गई है फिर भी उनकी लास को उठाने की पुलिस में हिम्मत
नहीं थी, फिर दरबारा सिंह जो मुख्यमंत्री थे
पंजाब के उन्होने भिंडरावाले को फोन किया फिर भिंडरावाले के इजाजत से डरते डरते पुलिस
वालों ने डीआईजी की लास कई घंटे बाद वहाँ से उठाई, ईस एक घटना
ने ये बता दिया की असल में पंजाब में सत्ता कोन चला रहा है ओर किसकी ताकत है, इसके बाद भी घटनाऐ होती रही कभी हिन्दू तो कभी सिक्ख मारे जाते हालात ओर ख़राब
होती गई, इन्दिरा गाँधी ने देखा पंजाब के लोगों ओर सिक्खों मे
कहीं न कहीं ये डर सता रहा है की वो हिंदुस्तान के हिस्से हैं भी या नहीं तो पंजाबी
ओर खाश करके सिक्खों को खुश करने के लिए गैनी जैल सिंह जो पहले पंजाब के मुख्यमंत्री
भी रहे ओर इन्दिरा के केबिनेट मे भी थे उन्हें 1982 में राष्ट्रपति बना देते हैं ताकि
सिक्ख खुश हो जाए, अब 1984 आ चुका था ओर 1985 में चुनाव भी होने
थे तो इन्दिरा ने सोचा चुनाव से पहले पंजाब के इस मसले को हल किया जाए लेकिन हालात
बिगड़ते ही जा रहे थे, तब इन्दिरा गाँधी ने विदेश मंत्री पीवी
नर्सिंभा राव को पंजाब भेजा ताकि हल कुछ निकल सके, नर्सिंभा राव
ने अकाली, भिंडरावाले ओर भी कई नेताओं
से बात की ओर जो भी उनके मसले थे सारी बात मान ली, नहर पानी की बात भी मान ली, चंडीगढ़ भी
पंजाब को दे दिया जाएगा, सारा काम ठीक चल रहा था, अकाली एवं बाँकी सारे नेताओं ने भी हामी भर दी लेकिन भिंडरावाले अड़ गए ओर इसी बीच
भिंडरावाले के ऊपर कई केस मुकदमा भी था, लूट पाट मर्डर, भिंडरावाले के कारण इन्दिरा
गाँधी का आख़री उम्मीद पीवी नर्सिंभा राव के द्वारा किया गया मीटिंग भी बेकार हो गया
तब इन्दिरा गाँधी को लगा अब बहोत हो गया, इसी बीच भिंडरावाले अकाल तक्थ पे अपना पूरा कब्जा कर लिया, अनाज की बोरियों एवं दूध के बर्तन
में गोला बारूद अकाल तक्थ के अंदर ले जाने लगा ओर ले जाने का सिलसिला महीनों तक चला
ओर किसी को खबर तक नहीं चली ओर हथियारों का पूरा ज़ख़ीरा जमा कर लिया उसे मालूम था की
जो काम वो कर रहा है सरकार एक ना एक दिन उसके खिलाफ एक्शन लेगी ओर सरकार से लड़ाई लड़ेगा, वो अपनी मांग से पीछे नहीं हटेगा चाहे अंजाम जो हो,
पंजाब की हालात बहोत ख़राब हो चुकी थी, अब इन्दिरा गाँधी को फैसला
लेना था, क्या ओर कैसे किया जाए, आर्मी
को गोल्डेन टैम्पल भेजा जाए, लेकिन ये सारी जानकारी ऑपरेशन गुप्त
रखी गई थी, इस ऑपरेशन की कोई भी जानकारी उस समय के राष्ट्रपति
गैनी जैल सिंह को नहीं दी गई, पहले पूरी कोशिश की गई, आत्मसमर्पण करने को कहा गया, उनकी सारी मांगें मनी जाएगी
लेकिन भिंडरावाले ने सारे प्रस्ताव को ठुकरा दिया ओर उधर भिंडरावाले के कहने पे खून
खराबा जारी था, 30 मई 1984 की रात पहली बार अमृतसर के आसपास फ़ोज
को देखा गया सीआरपीएफ़, बीएसएफ़ ओर पंजाब पुलिस तो पहले से थी लेकिन
फ़ोज 30 मई को पहली बार देखा गया, उसके बाद 1 जून रात 9 बजे से
अमृतसर में कर्फ़्यू लगा दिया जाता है । 1 जून रात 9 बजे
से 2 जून रात 9 बजे तक 24 घंटे में करीब 70 हजार सैनिक पंजाब ओर पूरे अमृतसर में फ़ैल
जाते हैं, 2 जून की रात प्रधानमंत्री इन्दिरा
गाँधी दूरदर्शन पर ये ऐलान करती है सरकार ने पंजाब से आतंकबाद को ख़तम करने का फैसला
किया है ओर तमाम नेताओं से अपील करती है की कोई इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन ना करें, अब 3 जून की तारीख आती है मोबाइल फोन उस समय था नही जीतने भी लैंड्लाइन फोन
थे उसका कनैक्शन 3 जून की सुबह से ही पूरे पंजाब की काट दी जाती है जीतने भी मीडिया
के लोग ओर विदेशी थे उनको वहाँ से बाहर कर दिया जाता है, ट्रेन-बसें
सब के रूट को रोक दिया जाता है, हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बार्डर
को सील कर दिया जाता है, बाँकी राज्य के बार्डर भी सील कर दी
जाती है, ओर पूरी फ़ोज गोल्डेन टैम्पल को चारों तरफ़ से अपने घेरे
में ले लेती है, भिंडरावाले के साथ उस वक़्त उसका एक खाश जनरल
साहबेग सिंह जो एक आर्मी अफ़सर रह चुके थे, कहते हैं अकाल तक्थ
पे कब्जा हथियारों को छिपा के लाना अकाल तक्थ में उनके लोगों की पोजीसनिंग ये सारा
काम जनरल साहबेग सिंह ने किया था क्यूकी आर्मी मे ऊंचे पोस्ट पे वो रह चुके थे ओर कई
लड़ाई भी उन्होने लड़ी थी तो इन सब चीजों की बारीक जानकारीयां उन्हें थी, अब जब सेना अमृतसर पहुँच चुकी थी तो पूरा अमृतसर सेना के हवाले कर दी गई थी, पुलिस या बाँकी चिजे सेकेंडेरी थी सेना ने अमृतसर को अपने कब्जे में ले लिया
था, 3 जून को जब गोल्डेन टैम्पल को सेना ने घेर लिया था उसदिन
गुरु पर्व होने के कारण गोल्डेन टैम्पल में श्रद्धालुओं की तादाद भी बहोत ज्यादे थी, कुछ लोग आत्मसमर्पण करने भी आए थे तो भीड़ बहोत ज्यादे थी, इसी बीच आर्मी ये ऐलान करती है की जो भी गोल्डेन टैम्पल के अंदर है वो शांति
से आत्मसमर्पण कर दे कुछ लोग आते भी हैं ओर ऐलान करने के बाद आर्मी भी कुछ घंटों तक
सांत हो जाती है क्यूकी आगे से अभी तक हरी झंडी नहीं मिली थी, 4 जून को फिर ऐलान करती है आर्मी फिर कुछ लोग बाहर आते हैं, 5 जून को फिर ऐलान किया जाता है लेकिन अभी तक केवल 150 लोग ही गोल्डेन टैम्पल
से बाहर निकलते हैं, जो कुछ लोग बाहर निकले उनका ये भी कहना था
की अंदर से बहोत लोगों को भिंडरावाले के लोगों ने आने भी नहीं दिया, ओर तमाम कोशिशों
के बाबजूद किसी ने आत्मसमर्पण नहीं किया, अब वक़्त आ चुका था दिल्ली से मिले कोड को अंजाम देने का ओर वो कोड था ऑपरेशन
ब्लू स्टार, 5 जून ठीक शाम 7 बजे मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार
जो इस ऑपरेशन को लीड कर रहे थे उन्हें हरी झंडी मिलती है ओर गोली बारी शुरू हो जाता
है, आर्मी के गोली के जवाब में अंदर से भी गोली चलती है, भिंडरावाले को ये पता था आर्मी आई है डराएगी धमकाएगि लेकिन गोल्डेन
टैम्पल पे हमला नहीं करेगी क्यूकी ये सिक्खों का सबसे बड़ा धर्म-स्थल है सारे सिक्खों
की भावनाऐ जुड़ी है तो सरकार ये कदम तो नहीं उठा सकती ओर उसने इसीलिए अकाल तक्थ को अपना
ठिकाना चुना था की अंदर से हम तो गोली चला सकतें हैं लेकिन उधर से कोई गोली नहीं चलाएगा
क्यूकी ये सिक्खों का धर्म-स्थल है ओर आर्मी के साथ भी सबसे बड़ी दिक्कत यही आ रही थी
की गोल्डेन टैम्पल को बहोत नुकसान हो सकता था इसके बाबजूद गोली बड़ी सुरू हुई, लेकिन आर्मी को जो इनपुट मिला था
वो गलत था, आर्मी ने गोलियां इसलिए चलाई ताकि जबाब में जब अंदर
से गोलियां चले तो उनकी गोलियां जल्द से जल्द ख़तम हो सके इसलिए अंधेरे मे
भी ऑपरेशन स्टार्ट किया गया ताकि ज्यादे हानी भी ना हो, लेकिन यहाँ उल्टा हो रहा था, इंटेलिजेंस की जो रिपोर्ट थी वो गलत थी जिस कारन जब कुछ जवान अंदर घुसने की
कोशिश करते हैं तो पहली खेप में ही 15-20 जवानों की मौत हो जाती है, उनलोगों ने अलग अलग पोजिसन ले रखी थी ओर हमारी इन्फॉर्मेशन गलत थी इस भारी
नुकसान के बाद जब आर्मी को लगता है इसतरीके से ओर भी बहोत नुकसान हो सकता है तो अगले
सुबह 6 बजे 6 जून को आर्मी टेंक बुलाया जाता है ओर टेंक से अंदर हमला किया जाता है
ओर फिर पूरे दिन छीट पूट गोलियां चलती है ओर महोल पूरे दिन लगभग सांत रहता है क्यूकी
दिन में ऑपरेशन बहोत मुसकिल था आर्मी अंधेरा होने का इंतज़ार करने लगती है, फिर अंधेरे में ऑपरेशन स्टार्ट होता है लेकिन फिर से जवानों का बहोत बड़ा नुकसान
होता है लेकिन एक चीज तय थी की जबतक सेना अकाल तक्थ में नहीं घुसेगी ये ऑपरेशन कामयाब
नहीं होगा ओर अब तक जितनी टीम ने अकाल तक्थ में घुसने की कोशीश की सारी टीम नाकाम, सिर्फ़ एक टीम थी जो अकाल तक्थ तक पहुँचने में कामयाब हो गई, ओर अकाल तक्थ में 6 जून की पूरी रात गोली बारी ओर धमकें भी होती है ओर 7 जून
की सुबह आर्मी के तरफ़ से ये ऐलान किया जाता है की ऑपरेशन सफ़ल रहा क्यूकी 7 जून की सुबह
अकाल तक्थ में बहोत सारी लासे पड़ी थी ओर उनमें एक लास जनरैल सिंह भिंडरावाले की थी, इसके बाद भी थोड़ी बहोत गोलियां चलती
रही लेकिन फ़ाइनली सारे पकड़े गए ओर कुछ ने समर्पण भी किया, लेकिन
अकाल तक्थ ओर गोल्डेन टैम्पल को बहोत ज्यादे नुकसान भी हुआ, ऑपरेशन
खत्म होता है लेकिन जैसा की मैंने आपको बताया था इस ऑपरेशन की कोई भी जानकारी राष्ट्रपति
जैल सिंह को नहीं दी जाती है ओर जब बाद में उन्हें पता चलता है तो वो नाराज भी होते
हैं लेकिन फिर भी वो सरकार के साथ खड़े रहते है, ऑपरेशन के बाद
8 जून को गैनी जैल सिंह को गोल्डेन टैम्पल भेजा जाता है लेकिन कुछ संदिग्थ लोग तब भी
वहाँ होते है ओर वो राष्ट्रपति गैनी जैल सिंह पर गोली चला देते हैं लेकिन गोली उनके
साथ चल रहे एक सेना के जवान के कंधे पे लगती है ओर उनकी ओर सेना दोनों की जान बच जाती
है, इसके बाद फिर से तलासी ली जाती है ओर सारे लासों को हटाने
का काम किया जाता है, इस ऑपरेशन में कुल 83 सेना के जवान ओर अफ़सर
शहीद होते हैं, जबकि 248 के करीब गंभीर रूप से घायल होते हैं, 492 आतंकवादी ओर कुछ बेक़सूर जो उसदिन मत्था टेकने गए थे वो मारे जाते हैं, ओर बहोत बड़ी संख्या थी घायल लोगों की, ये सरकारी आंकड़े
हैं लेकिन कहा जाता है इस ऑपरेशन में हज़ार से ज्यादे लोगों की जाने गई थी, ओर 250 से ज्यादे सेना के जवानों की मौत हुई थी। पहली बार गोल्डेन
टैम्पल मे इस ऑपरेशन के दोरान 3 दिनो तो पुजा अर्चना नहीं हुई जो इतिहास में ऐसा कभी
नहीं हुआ, जब इस तरह से बातें फैलती है की गोल्डेन
टैम्पल में सेनाओं ने ऑपरेशन किया है तो सिक्खों के भावनाओं को बहोत धक्का पहुँचता
है, ओर देश भर से जो भारतीय सेना के साथ सीख जुड़े थे उनके बागी
हो जाने की ख़बर आती है, कई जगह तो सीख सेना ने अपने अफसरों को
गोली भी मार दी लेकिन किसी तरह इसे कंट्रोल किया गया, अकाल तक्थ
को फिर से बनाने के लिए सरकार ने कोशिश करी लेकिन उनलोगों ने सरकार के तरफ़ से कोई भी
मदद लेने से मना कर दिया ओर सिक्खों ने कहा हम खुद इसे बनाएँगे ओर उन्होने इसकी मरम्मत
की, ओर इस ऑपरेशन का सबसे बड़ा रिएक्शन ऑपरेशन से ठीक 3 महीने
बाद देखा जाता है जब इस ऑपरेशन का मास्टर माइंड बोले या जो भी बोले प्रधानमंत्री इन्दिरा
गाँधी को उनके अपने ही सरकारी निवास पर उनके 2 अंगरक्षक जो सीख थे सतवंत सिंह ओर बेयंत
सिंह गोली मार देते हैं ओर इन्दिरा गाँधी की मौत हो जाती है,
उनकी मौत के बाद देश भर में दंगा भड़कता है खाश तोर पर दिल्ली में ओर उस देंगे में करीब
3 हजार से ज्यादे सीख मारे जाते हैं तो ये सारी चिजे ऑपरेशन ब्लू स्टार के साथ जुड़ी
थी।
Operation Blue Star | ऑपरेशन ब्लू स्टार
इस ऑपरेशन ने बहोत कुछ तबाह कर दिया, एक मजबूत प्रधानमंत्री हमने खोया, कई सैनिक ओर अफ़सर
हमने खोए, कई निर्दोष जाने गई, कई सीख सैनिक
बागी हो गए।
लेकिन इन चीजों पे आज भी बहस होती है, अगर जनरैल सिंह भिंडरावाले को इन्दिरा गाँधी ने अपना काम निकालने के लीए सर पे ना चढ़ाया होता तो वो इतना खतरनाक ना होता, अगर सरकार ने मर्डर ओर लुटपाट में भिंडरावाले को गिरफ्तार कर लिया होता तो ऑपरेशन ब्लू स्टार की नोवत ना आती, अगर ऑपरेशन ब्लू स्टार नहीं हुआ होता तो इन्दिरा गाँधी की मौत ना होती ओर अगर इन्दिरा गाँधी की मौत ना हुई होती तो हजारों निर्दोष सीख दिल्ली की सड़कों पे मारे ना गए होते, हजर्रों बच्चे अनाथ ना हुए होते ओर हजारों कोक सुनी ना होती।
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